उपन्यास यथार्थ कहानी को लेकर चलने वाली एक कथात्मक विधा है। इस विधा का जन्म 18 वीं शताब्दी के लगभग पश्चिमी देशों में हुआ। उपन्यास विद्या के जन्म में पूंजीवाद और औद्योगिक क्रांति का अहम योगदान है। जब पश्चिम में पूंजीवादी संस्कृति और औद्योगिक क्रांति का प्रसार होता है तो एक खास मध्यम वर्ग का उदय होता है। यह मध्यम वर्ग अपने मूलभूत कार्यों को करने के बाद एक अच्छा खासा समय अवकाश में व्यतीत करता था। अपने इसी अवकाश के समय का सदुपयोग करने के लिए मध्यम वर्ग के लोगों ने उपन्यास पढ़ने और लिखना शुरू किया।
इस प्रकार से उपन्यास विधा की शुरुआत मानी जाती है। उपन्यास विधा में कहानी पूर्ण यथार्थ को लेकर चलती है। जिससे उपन्यास विधा और सजीव होता है और उसकी प्रासंगिकता समाज में बढ़ जाती है। कुछ विद्वानों ने उपन्यास को आधुनिक युग का महाकाव्य माना है। यह बात पूर्ण रूप से सत्य भी है क्योंकि उपन्यास एक लंबी कहानी के रूप में गद्यात्मक विधा है। जिसमें किसी एक कथानक के संपूर्ण पृष्ठभूमि को रेखांकित किया जाता है।
यदि हम हिंदी उपन्यास की बात करें तो इस क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद को हिंदी उपन्यास विधा का सम्राट कहा जाता है। इन्हीं के नाम को आधार लेकर हिंदी उपन्यास को तीन चरणों में बांटा गया है। पहला चरण प्रेमचंद से पूर्व हिंदी उपन्यास विधा, दूसरा चरण प्रेमचंद कालीन हिंदी उपन्यास विधा और तीसरा चरण प्रेमचंद के बाद हिंदी उपन्यास विधा। इन तीन चरणों को आधार लेकर हम हिंदी उपन्यास के उद्भव और विकास का अध्ययन करेंगे।
प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास विधा
पृथ्वी पर उपस्थित हर वस्तु के प्रारंभ होने में कोई न कोई प्रस्थान बिंदु अवश्य होता है वैसे ही हिंदी उपन्यास में 1882 ईस्वी में लिखा गया ‘परीक्षा गुरु’ उपन्यास को हिंदी उपन्यास का प्रस्थान बिंदु माना जाता है। इस तरह परीक्षा गुरु को हिंदी उपन्यास विद्या का प्रथम उपन्यास माना जाता है।
इस युग में मुख्यतः तीन तरह के उपन्यास देखने को मिलते हैं
- उपदेशात्मक और सुधारवादी उपन्यास-
इन उपन्यासों में यथार्थ की मात्रा बहुत कम होती है। सामाजिक आदर्श अधिक से मात्रा में होती है। कहानी में समस्या दिखाई जाती है और अंत में उस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर एक उपदेश के माध्यम से कहानी का अंत किया जाता है अर्थात हैप्पी एंडिंग। उदाहरण के रूप में लाला श्रीनिवास दास का ‘परीक्षा गुरु’ उपन्यास और श्रद्धा राम फुलौरी का ‘भाग्यवती’ उपन्यास सुधारवादी और उपदेशात्मक उपन्यास के अंतर्गत आते हैं।
- मनोरंजनपरक उपन्यास-
इस प्रकार के उपन्यासों में एक रहस्यमयी कहानी बनाई जाती है और अंत तक उस रहस्य की खोज के लिए एक कल्पना का निर्माण किया जाता है। उस पूरी कल्पना में पाठक खोया रहता है अंत में उपन्यासकार उस रहस्य से पर्दा उठाकर उस उपन्यास का समापन करता है। इसमें जासूसी उपन्यास भी शामिल है। जिसमें तमाम घटनाओं समस्याओं को लेकर उपन्यास लिखा जाता है और अंत में उसका समाधान भी प्रस्तुत किया जाता है। देवकीनंदन खत्री को इस तरह के उपन्यासों को लिखने में महारथ हासिल है। उदाहरण के लिए बात करें तो ‘चंद्रकांता’ देवकीनंदन खत्री जी का इसी तरह का उपन्यास है
- ऐतिहासिक उपन्यास-
इस तरह के उपन्यासों में भारतीय इतिहास के किसी गौरवशाली प्रसंग को लेकर पूरा उपन्यास लिखा जाता है। उसका कथानक कोई ऐतिहासिक चरित्र, घटना और स्थान होता है। जिसको लेकर उपन्यासकार अपनी रचना करता था। इस तरह के उपन्यासों के माध्यम से लेखक का मूल उद्देश्य भारतीय गौरवशाली ऐतिहासिक परंपरा को बताना होता है। जिसके माध्यम से समाज में स्वबोध जागृत हो।
उदाहरण स्वरूप किशोरी लाल गोस्वामी का उपन्यास ‘त्रिवेणी’, ‘रजिया बेगम’ आदि ऐतिहासिक उपन्यास की श्रेणी में आते हैं।
अब आपके मन में एक प्रश्न उठ रहा होगा कि क्या प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास विधा में कोई भी यथार्थ परख उपन्यास नहीं लिखा गया? तो इसका उत्तर होगा ऐसा बिल्कुल नहीं है। प्रेमचंद से पूर्व युग में भी यथार्थ परख उपन्यास लिखे गए। उस समय के कुछ उपन्यासकार थे जिन्होंने यथार्थ से परिपूर्ण उपन्यास लिखें। उनमें प्रमुख है बृजनंदन सहाय, भुवनेश्वर मिश्र, मेहता लज्जाराम शर्मा आदि। अगर हम बात करें तो इन उपन्यासकारों में सबसे सर्वश्रेष्ठ यथार्थवादी उपन्यासकार भुवनेश्वर मिश्र थे। इनका उपन्यास ‘घराऊ घटना’ हिंदी का प्रथम यथार्थवादी उपन्यास माना जाता है। हम यह देख सकते हैं कि प्रेमचंद से पूर्व युग में भी यथार्थवादी उपन्यास लिखे गए लेकिन इनकी मात्रता काफी कम थी।
हिंदी उपन्यास विधा में प्रेमचंद का आगमन क्रांतिकारी घटना है प्रेमचंद जी का लेखन कार्य 1916 से 1936 तक था इस समय अवधि में प्रेमचंद ने बहुत से सर्वश्रेष्ठ उपन्यास लिखें जो आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का लेखन कार्य ही जिस अवधि में उन्होंने अपनी उपन्यास लेखन का कार्य किया उसे कल अवधि को ही उपन्यास लेखन का प्रेमचंद युग माना जाता है क्योंकि प्रेमचंद ने एक आधार बिंदु खड़ा किया की इकठार्थवादी उपन्यास कैसा होना चाहिए शुरुआत में प्रेमचंद ने भी आदर्शवादी और सुधारवादी उपन्यास लिखें लेकिन गोदान तक आते-आते प्रेमचंद घर यथार्थवाद तक पहुंच जाते हैं जिसको चरम यथार्थवाद भी कह सकते हैं बिना किसी समझौता के जैसी स्थिति है वैसी स्थिति को अपने उपन्यास में रेखांकित करना यह प्रेमचंद की शानदार उपलब्धि थी।
हिंदी उपन्यास में प्रेमचंद का योगदान-
सर्वप्रथम प्रेमचंद ने उपन्यास के उद्देश्य में बदलाव किया। उन्होंने कहा कि उपन्यास का उद्देश्य व्यक्ति का मनोरंजन करना नहीं होना चाहिए बल्कि उसका उद्देश्य सामाजिक समस्याओं पर चोट करना होना चाहिए साथ ही सामाजिक समस्याओं को दिखाना होना चाहिए। सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए उसके लिए क्या जरूरी कदम हो सकते हैं उस पर बात करना होना चाहिए? क्योंकि समाज स्वच्छ होगा तो देश स्वच्छ होगा देश स्वच्छ होगा तो राष्ट्र विकास की तरफ अग्रसर होगा और समाज की प्रथम इकाई व्यक्ति होता है। इसीलिए उपन्यास का यह भी उद्देश्य होना चाहिए कि वह व्यक्ति के चरित्र के यथार्थ का निरीक्षण कर उसके चरित्र निर्माण में भी अपना योगदान दे। क्योंकि व्यक्ति निर्माण से एक सशक्त देश का निर्माण होता है।
इस तरह प्रेमचंद ने सर्वप्रथम उपन्यास के उद्देश्य में परिवर्तन कर उसके केंद्र में व्यक्ति के चरित्र और उसके यथार्थ को महत्व दिया तथा सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात भी किया और उसको समाप्त कर एक शिक्षित समाज में बदलने का प्रयास किया।
प्रेमचंद जी ने दूसरा परिवर्तन उपन्यास के विषय वस्तु को लेकर किया प्रेमचंद जी ने अपने अधिकतर उपन्यासों का विषय वस्तु सामाजिक समस्याओं को बनाया क्योंकि यह सामाजिक समस्याएं समाज को खोखला करती हैं। और समाज को एक जड़ बुद्धि समाज में परिवर्तित कर देती हैं। इन्हीं सभी विषयों पर कुठराघात करते हुए प्रेमचंद जी ने सामाजिक बदलाव पर विशेष ध्यान दिया इन सभी विषयों को लेकर उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं से संबंधित उपन्यास लिखें। जिसमें निर्मला उपन्यास प्रमुख है- इस उपन्यास के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद जी अनमोल विवाह और विधवा जीवन की समस्याओं को उठाते हैं।
वही सेवा सदन उपन्यास के माध्यम से विश्वास समस्या पर गहरा निरीक्षण करते हैं और उसका एक स्त्री के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है इन तमाम विषयों को समाज के समक्ष लाकर रखते हैं। वहीं गबन उपन्यास के माध्यम से प्रेमचंद यह बताने का प्रयास करते हैं कि अगर आवश्यकता से ज्यादा अधिक हमारी इच्छाएं बढ़ती जाएगी तो हमें बहुत तरह के नुकसान अपने जीवन में उठाने पड़ सकते हैं। वहीं कर्मभूमि उपन्यास में प्रेमचंद जी ने किसान समस्याओं और किसानों के विद्रोही जीवन को रेखांकित किया है। वही रंगभूमि उपन्यास में महाजनिक व्यवस्था और पूंजीवादी व्यवस्था को समाज के सामने रखते है।
मुंशी प्रेमचंद का अंतिम उपन्यास गोदान है जिसे महाकाव्य की संज्ञा दी गई है। गोदान मुंशी प्रेमचंद का एकमात्र उपन्यास है जिसमें उन्होंने समाज की सारी समस्याओं एक साथ लाकर रख दिया है। अलग-अलग पत्रों के माध्यम से अलग-अलग समस्याओं को उपन्यास में मुंशी प्रेमचंद जी ने रेखांकित किया है। होरी के माध्यम से ऋण समस्या को दिखाया है झुनिया के माध्यम से वैधव की लोहड़ी के माध्यम से उन्होंने अनमेल विवाह की समस्या को वही सोना और रूपा के माध्यम से दहेज समस्या सिलिया के माध्यम से दलित विमर्श थानेदार के माध्यम से रिश्वतखोरी व शोषण की समस्या को उपन्यास में प्रदर्शित किया है।
प्रेमचंद जी ने पात्रों के स्तर पर भी उपन्यास में बहुत बड़ा परिवर्तन किया। उन्होंने पात्रों के माध्यम से उपन्यास में बहुत अधिक मात्रा में भीड़ जुटाने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने कम से कम मात्रा में पात्रों को उपन्यास में रखा जिनके माध्यम से वह अपने विचार को उपन्यास में स्पष्ट कर सकते थे। उन्हें का पात्रों चयन किया और उनके चरित्र को पूरे यथार्थवादी तरीके से चित्रित किया और उनके मूल स्वरूप को ही महत्व दिया।
भाषा की बात करें तो प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यास में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया। कोई भी संस्कृतनिस्थ और क्लिस्थ हिंदी का प्रयोग नहीं किया क्योंकि वह जानते थे कि यह वह दौर है जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर है और इस समय हमें उस भाषा का प्रयोग करना है जो भारतीय समाज को अधिक से अधिक मात्रा में जोड़ सके जो भारतीय समाज अधिक से अधिक मात्रा में भाषा बोलता है। उस भाषा का प्रयोग मुंशी प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यासों में किया।
1 thought on “हिन्दी उपन्यास: उद्भव और विकास”