मानव के प्रत्येक कार्य में किसी न किसी प्रकार से कोई न कोई उद्देश्य शामिल होता है। प्रयोजन का अर्थ उन उपलब्धियां से है जो हमको किसी कार्य करने से प्राप्त होता है। अतः मानव का प्रत्येक कार्य इन्हीं उद्देश्यों और परियोजनों से संचालित होता है तो ऐसे में हमारा काव्य कैसे अछूता रह सकता है।
काव्य प्रयोजन की परिभाषा
किसी काव्य की रचना करते समय उस काव्य में कवि का जो उद्देश्य निहित होता है वही काव्य प्रयोजन कहलाता है जैसे- किसी काव्य का उद्देश्य प्रत्येक इंसान को आनंदित करना है। किसी काव्य का प्रयोजन इंसान के नैतिक मूल्यों को डालना है। किसी काव्य का उद्देश्य समाज को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का है। किसी काव्य का उद्देश्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति को प्रेम का महत्व बताने का है। ऐसे ही तमाम उद्देश्यों को लेकर एक सजग कवि अपने काव्य की रचना करता है।
सुप्रसिद्ध विद्वान भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटक के प्रयोजन को परिभाषित किया है। नाटक की रचना किस उद्देश्य के साथ की जाती है इसके तमाम विषयों पर उन्होंने प्रकाश डाला है। भरत मुनि बताते हैं कि दृश्य काव्य मानव मन के दुख, सुख तथा थकान पीड़ित मन को शांति प्रदान करता है। कीर्ति, आनंद, मानव मन को तीव्र करने वाला आदि दृश्य नाटक प्रयोजन होता है।
कवि काव्य प्रयोजन इस उद्देश्य से भी करता है कि मानव हृदय लाभान्वित हो और उसके मन को संतुष्टि प्रदान करें। कवि अपने सृजन प्रक्रिया से एक सुंदर काव्य निर्मित करने का अटूट प्रयास करता है। जिसमें सुख-दुख प्रेम द्वेष आदि विशेष सम्मिलित होकर अंत में आनंद तक पहुंचता है।
काव्य प्रयोजन का उद्देश्य शिक्षा और लोकमंगल भी है। यह काफी पुरानी धारणा है जो संस्कृत व्याकरण में हमें देखने को मिलता है। प्राचीन भारतीय अवधारणा के अनुसार काव्य लिखना एक मनन की प्रक्रिया है। प्राचीन काल में कई आदर्श नैतिकता सामाजिक और धार्मिक धारणा व्यक्ति से जुड़ा हुआ करता था। उस समय व्यष्टि और समष्टि चिंतन प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण से शुरू होता था और व्यक्ति के कल्याण पर ही खत्म हो जाता था क्योंकि उसे समय के सभी धार्मिक और पौराणिक ग्रंथ में व्यक्ति को परम महत्व दिया जाता था।
आचार्य भामह के अनुसार उत्तम काव्य चारों पुरुषार्थ तथा सभी कलाओं में परिपूर्ण और आनंद उत्पन्न करने वाली होती है। भामह के इस विचार को आने वाले बाद के विद्वानों ने बहुत अधिक महत्व और सम्मान दिया।
आचार्य वामन ने काव्य के दो प्रयोजन माने हैं आनंद और कीर्ति आनंद को आचार्य वामन ने काव्य का दृष्ट और किर्ति को काव्य का अदृश्ट प्रयोजन माना है।
आचार्य मम्मट ने काव्य के छ प्रयोजन माने हैं। यश प्राप्ति, अर्थ प्राप्ति, व्यवहार-प्ररिज्ञान, अनिष्ट-निवारण, अलौकिक आनंद अनुभूति तथा कांतासम्मित उपदेश।
यश प्राप्ति
प्रत्येक इंसान की यही आकांशा होती है कि वह जीवन में अधिक से अधिक यश की प्राप्ति करें। उसके लिए वह दिन रात परिश्रम करता है लेकिन जब हम साहित्य में कवि कर्म की बात करते हैं तो तो एक कवि या लेखक अपने काव्य और रचना के माध्यम से यश प्राप्ति करता है। यदि हम उदाहरण देखें तो जयशंकर प्रसाद को कामायनी नामक महाकाव्य लिखकर पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त हुई। निराला को राम की शक्ति पूजा से, रामधारी सिंह दिनकर को रश्मिरथी लिखने से आदि रचनाएं उनके यश प्राप्ति का कारण हैं।
अर्थ प्राप्ति
जैसे हमें जीने के लिए भोजन की आवश्यकता है वैसे ही संसार में अपने कार्यों, अपने परिवार और समाज में खुद को बनाएं रखने के लिए हमें धन की आवश्यकता होती है। धन हम अपने परिश्रम के माध्यम से कमाते हैं। काव्य प्रयोजन के माध्यम से हम बौद्धिक धन की प्राप्ति करते हैं। यदि हम लेखक या कवि किसी ऐसी रचना का सृजन करता है जिससे संपूर्ण मानव का कल्याण होता है। आगे भी ऐसे ही रचनाएं करते रहें। इसके लिए सरकार और समाज कवि के प्रोत्साहन के लिए कुछ धनराशि प्रदान करती है।
जो उसकी आर्थिक मदद करता है क्योंकि वह कठिन परिश्रम अपने शरीर के माध्यम से नहीं कर सकता पर अपनी बौद्धिकता से बौद्धिक श्रम करके अच्छे काव्य का सृजन कर सकता है। इसलिए उसकी आर्थिक मदद बहुत जरूरी है। काव्य प्रयोजन के माध्यम से हमें अर्थ की भी प्राप्ति होती है अर्थात धन की भी प्राप्ति होती है।
इस पृथ्वी पर कुछ कवि ऐसे हुए हैं जो बिना किसी लाभ और लालच के बहुत ही सुंदर और उत्तम रचनाएं लिखकर गए हैं जैसे तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की। इसके लिए उन्होंने समाज से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली नहीं समाज ने ही उनका कोई आर्थिक मदद किया लेकिन वर्तमान दौर में उनकी रचना रामचरितमानस हिंदू धर्म में सबसे पवित्र धर्म ग्रंथ है। इसके माध्यम से उन्होंने पुरुषों में उत्तम राम जैसा चरित्र समाज के सामने प्रस्तुत किया और उनके जैसे बनने की प्रेरणा सभी पुरुषों में भरा और समाज में राम राज्य की अवधारणा को स्थापित किया।
व्यवहार परिज्ञान
काव्य के माध्यम से समाज में हमें कैसा आचरण करना चाहिए इसकी भी शिक्षा दी जाती है। विश्व भर में ऐसे अनेकों काव्य उपलब्ध है जिनकी रचना कवि ने गुरु और शिष्य का कर्तव्य, पिता और पुत्र के कर्तव्य, माता और पिता के कर्तव्य, भाई के कर्तव्य, पत्नी के कर्तव्य, समाज के प्रति हमारा उत्तरदायित्व आदि विषयों को लेकर बहुत सारी काव्य रचनाएं हुई है।
जिनका मुख्य उद्देश्य समाज परिवार देश राष्ट्र विश्व आदि को सुंदर और कर्तव्य पूर्ण बनाना है। कभी-कभी बौद्धिक कथाओं के माध्यम से अच्छे और बुरे का ज्ञान करने के लिए भी काव्य का प्रयोजन होता है। ताकि आने वाली पीढ़ी बोध कथाओं से प्रेरणा लेकर भविष्य में कोई गलती ना करें और अपने पूर्वजों की गलतियों से सीख ले।
अनिष्ट निवारण
काव्य का प्रयोजन बुरे घटनाओं से जागरूक करने तथा उससे बचने के लिए भी किया जाता है। ऐसे बहुत से कहानी है जिसमें विभिन्न पात्रों के माध्यम से कवि ने किसी बुरे घटना के प्रति लोगों को आगाह किया। वर्तमान दौर में पर्यावरण पर बहुत अधिक काव्य लिखा जा रहे हैं। इसका उद्देश्य पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करना तथा पर्यावरण से होने वाले दुष्प्रभाव को लोगों के बीच बताना भी है।
अलौकिक आनंद अनुभूति
काव्य का परम उद्देश्य ऐसी आनंद की प्राप्ति है जिसकी अनुभूति इस लोक से भी परे हो। जो हृदय को आनंदित करे। इस काव्य प्रयोजन को काव्य का सर्वोत्तम उद्देश्य माना गया है। अगर जिस रचना को पढ़कर हमारा हृदय आनंद और रोमांस से भर उठता है। वह सर्वश्रेष्ठ काव्य है। यह आनंद की प्रति कवि और पाठक दोनों को समान रूप से प्राप्त होती है। काव्य लिखते समय इस आनंद की अनुभूति कवि करता है तथा काव्य को पढ़ते वक्त इस आनंद का अनुभव पाठक भी समान मात्रा में करता है।
कांतासम्मित उपदेश
भारतीय काव्यशास्त्र में उपदेश की तीन शैलियाँ बताई गई हैं।
हिंदी साहित्य में काव्य प्रयोजन पर बहुत अधिक मात्रा में लिखा गया है। भक्ति काल में ऐसे बहुत से रचनाएं उपलब्ध हैं जिनका उद्देश्य कुछ ना कुछ जरूर था। जिसमें कवि अपने दृष्टिकोण का प्रयोग कर काव्य प्रयोजन किया है। रीतिकाल में भी ऐसे बहुत सारे ग्रंथ मिले जिनकी रचना किसी विशेष का भी प्रयोजन को लेकर की गई है। रीतिकाल के कवि ने अपने लक्षण ग्रंथ के प्रारंभ में काव्य प्रयोजन के बारे में बताया है।
आधुनिक काल में काव्य प्रयोजन पर बहुत अधिक लिखा गया। विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मानना है कि काव्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है और वह इसका कड़े शब्दों में विरोध करते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार काव्य प्रयोजन का मूल उद्देश्य मानव जगत के मार्मिक पक्षों को सभी के सामने दिखाना तथा उसका मानव मन से एकात्म स्थापित करना है
काव्य का परम लक्ष्य पृथ्वी और मानव जीवन के भावनात्मक पक्षओं को सभी के सामने प्रस्तुत करना तथा मानव को संकुचित हृदय से बाहर निकालकर एक विश्व परिवार के नजरिया को धारण करने का चेतना भी देता है। संपूर्ण विश्व को अपना परिवार के रूप में आत्मसात करने का प्रेरणा भी देता है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मनुष्य को काव्य प्रयोजन का लक्ष्य मानते हैं। साहित्य को लोक कल्याण या लोकमंगल की विधा मानते हैं।
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