कम्युनिकेशन मूल रूप में सूचना या किसी जानकारी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने की प्रक्रिया है इसी विधि को संप्रेषण की प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया में संदेश भेजने वाला अपने संदेश को किसी संचार माध्यम से श्रोता या ग्राहक पहुंचता है। जैसे ही श्रोता या ग्राहक को संदेश प्राप्त होता है उस संदेश पर श्रोता या ग्राहक अपनी प्रतिक्रिया या कहें तो फीडबैक भी देता है।
संप्रेषण के लिए यह आवश्यक है कि बोलने वाला और सुनने वाले में समता हो अर्थात कहने का मतलब यह है कि अगर बोलने वाला अपना संप्रेषण हिंदी भाषा में कर रहा है तो सुनने वाले से आग्रह होता है कि उसको भी हिंदी समझ में आती हो तभी संप्रेषण में समानता स्थापित होता है। यदि बोलने वाला हिंदी में बोल रहा है और सुनने वाले को हिंदी न समझ में आती है ना बोल पाता है तो यह एक अपूर्ण संप्रेषण कहलाएगा। यह समता भाषा, सूचना, संकेत आदि सभी स्तरों पर होना चाहिए बोलने और सुनने वाले के बीच में।
संप्रेषण के तत्व
संप्रेषण की प्रक्रिया में पांच मूल तत्व है- 1. प्रेषक (Communication) 2. माध्यम (Channel) 3. संदेश (Massage) 4. प्रापक (Receiver) 5. प्रतिपुष्टि (Fees back)
प्रेषक वह होता है जो संप्रेषण की प्रक्रिया को प्रारंभ करता है। अर्थात संदेश का पहला स्त्रोत प्रेषक होता है। संप्रेषण अच्छे तरीके से हो इसके लिए प्रेषक में कुछ प्रभावशाली गुण होने चाहिए।
भाषा संप्रेषण के लिए प्रमुख उपकरण है इसलिए प्रेषक का भाषा स्पष्ट एवं सटीक हो। जिससे प्रेषक से संदेश लिखने तथा बोलने में किसी प्रकार के त्रुटि न हो और संप्रेषण की प्रक्रिया बहुत ही अच्छे तथा सुचारू तरीके से हो।
प्रेषक को जिस विषय पर संदेश को संचारित करना है उस विषय पर उसका ज्ञान समझ मनोवृति आदि स्पष्ट और परिपक्व होने चाहिए। जिससे संदेश प्राप्त करने वाले पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रापक प्रेषक के के संप्रेषण को भली-भांति समझ पाता है।
कोई भी संदेश भेजने वाला या प्रेषक अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था के अनुरूप प्रेषण करता है इसलिए प्रेषक को अपनी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का अच्छे से भान होना चाहिए। कहने का मतलब यह है कि फ्रांस और जापान के व्यक्ति का प्रेषण या संदेश भेजने का तरीका या समझने का तरीका वैसा नहीं हो सकता जैसा किसी एक हिंदुस्तानी व्यक्ति का दूसरे हिन्दुस्तानी से।
माध्यम
माध्यम या चैनल संदेश भेजने वाले प्रेषक और संदेश को प्राप्त करने वाले प्रापक के बीच एक पुल का काम करता है। यह मध्य किसी भी प्रकार का हो सकता है जैसे एक दूसरे के बीच पत्र के माध्यम से बातचीत कोई सभा या मीटिंग के माध्यम से टेलीफोन पर बातचीत के माध्यम से रेडियो समाचार पत्र या व्यक्तिगत आदि हो सकते हैं। ये वो माध्यम है जिनके द्वारा संदेश भेजने वाला प्रेषक अपना संदेश प्रापक तक पहुंचता है। हम जितना अच्छा माध्यम का चुनाव करेंगे हमारी संप्रेषण की प्रक्रिया उतनी ही सफल होगी।
संदेश
संदेश भेजने वाला जिस प्रकार अपने विचार को जैसे लिखकर, बोलकर, चित्र बनाकर या अपनी भाव भंगिमाओं से संकेत के माध्यम से अपने अंदर के विचार को प्रकट करता है। उसको हम संदेश कहते हैं। हमें जिस विषय वस्तु पर संदेश भेजना है उसका हमें अच्छे से पता होना चाहिए। अर्थात संदेश का विषय वस्तु क्या है? हमें किस विषय को लेकर संदेश भेजना है? उसको कैसे सरल से सरल शब्दों में प्रापक को समझना है आदि विषय हमें बखूबी ध्यान हो।
जिससे हमारा संप्रेषण और अधिक सफल होगा। वह बोलते हैं ना की जैसा देश वैसा भेष अर्थात संप्रेषण की प्रक्रिया में भी यही कहने का मतलब है कि जैसे लोग हो वैसा ही हमारा संदेश पहुंचाने का प्रक्रिया भी होना चाहिए वैसी ही हमारी संदेश की भाषा होनी चाहिए अगर पढ़े-लिखे लोग हैं तो उनकी ही भाषा में हमारा संदेश होना चाहिए। अगर अनपढ़ लोग हैं तो उनकी ही भाषा में हमारा संदेश का प्रक्रिया होना चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोगों तक हमारा विषय वस्तु पहुंच सके।
अपने विचारों के संदेश को एक क्रम के रूप में प्रापक के सामने रखना चाहिए। जिससे सारा बात और विचार स्पष्ट हो की प्रेषक कहना क्या चाहता है?
प्रेषक को संदेश ऐसे प्रसारित करना चाहिए कि वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला हो। संप्रेषण की प्रक्रिया में प्रेषक को उतनी ही बातें या संदेश कहना चाहिए जितना की जरूरत हो।
प्रापक
जो व्यक्ति संदेश भेजने वाले (प्रेषक) का संदेश प्राप्त करता है उसे प्रापक कहते हैं। यहां पर संदेश प्राप्त करने वाला कोई एक व्यक्ति भी हो सकता है या फिर एक पूरा जन समुदाय। संप्रेषण की प्रक्रिया उतना ही सफल होगी जितना प्रेषक और प्रापक एक ही भाव विचार एक ही भाषा को बहुत अच्छे से समझने वाले हो। संप्रेषण की प्रक्रिया तभी पूर्ण मानी जाएगी जब संदेश भेजने वाला प्रेषक का संदेश प्रापक द्वारा प्राप्त कर लिया जाए।
फीडबैक या प्रतिक्रिया
प्रेषक ने जो संदेश भेजा और उसको प्रापक ने प्राप्त करके उसको पढ़ने सुनने या समझने के बाद उस पर अपना जो विचार देता है उसको हम फीडबैक या प्रतिक्रिया कहते हैं। प्रतिक्रिया प्राप्त होने का मतलब यह भी है कि संदेश प्रापक तक पहुंच गया है। और इससे यह भी पता चलता है कि प्रेषक जो बात कहना चाहता है वही बात प्रापक तक पहुंची है कि नहीं?
संप्रेषण की प्रक्रिया इन पांच तत्वों से मिलकर पूर्ण होती है। अगर हम आज की बात करें तो संप्रेषण केवल व्यक्तिगत बातचीत समाचार पत्र आदि तक सीमित नहीं है। आज संप्रेषण की प्रक्रिया बहुत विस्तृत हो चुकी है जब से भूमंडलीकरण के बाद से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मोबाइल फोन, तकनीकी उपकरण, रेडियो, टेलीविजन, सोशल मीडिया आदि के माध्यम से संप्रेषण की प्रक्रिया का स्वरूप बहुत ही विस्तृत और विशाल हो गया है।
एक सज्जन नागरिक होते हुए हमें इस बात का भी ध्यान रखना है कि हमारे संप्रेषण की प्रक्रिया समाज को जोड़ने की होनी चाहिए ना कि उसको तोड़ने के लिए। इसलिए हमें एक स्वच्छ स्वस्थ तथा सौहार्दपूर्ण संप्रेषण की प्रक्रिया करनी चाहिए जिसमें सभी का कल्याण नहीं तो निहित हो।
निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि संप्रेषण की प्रक्रिया आज के समाज के लिए बहुत जरूरी और कारगर है। इसके माध्यम से हम अपने विचार भाव संकेत आदि को स्पष्ट रूप से सभी को समझ सकते हैं। इसलिए संप्रेषण की प्रक्रिया हमारे लिए अति आवश्यक है।
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