काव्य दोष

काव्य दोष उसे कहते हैं जो काव्य में रस और उसकी सुंदरता को कम करते हैं। वह वस्तु जिसके द्वारा काव्य का भाव समझन में कोई रुकावट आए या रस का आस्वादन करने में कोई रुकावट आए तो उसे हम काव्य दोष कहते हैं।

किसी वस्तु के द्वारा कविता के मूल भाव को समझने में बाधा उत्पन्न होती है तो उसे हम काव्य दोष कहते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि वह वस्तु या उपकरण कौन सी है जिससे कविता के भाव को समझने में बाधा उत्पन्न होती है। तो वह वस्तु है उस काव्य की भाषा, शब्द, अलंकार, वाक्य, विन्यास, रस, छंद आदि वह वस्तु है जिनके माध्यम से कोई काव्य सुंदर और रसप्रिय बनता है। जिसको पढ़ कर सुनकर हमें आनंद की अनुभूति होती है। यह आनंद की अनुभूति तभी संभव है जब इन सभी उपकरणों का समुचित मात्रा में प्रयोग किया गया हो।

विद्वानों का भी यही मानना है कि सफल और सुंदर काव्य वही है जिसमें सभी रसों सभी भाव सभी गुण आदि मौजूद हो। जिससे पाठक को पढ़कर या उसे सुनकर एक नए भाव की अनुभूति हो और उसकी एक नई प्रेरणा और एक नई जागृति दे।

वह पृथ्वी का सबसे सफल काव्य है। जिसमें पूरे समाज का कल्याण निहित हो। लेकिन जब इन्हीं बिंदुओं का अभाव होता है तो कोई भी काव्य समाज में सफल सिद्ध नहीं हो सकता। आगे हम उन सभी काव्य दोष को पढ़ेंगे जिनके होने से काव्य की सुंदरता और उसकी रमणीयता प्रभावित होती है।

हम उस काव्य का समुचित आलोचना तभी कर पाएंगे जब उस काव्य के दोषों को जानेंगे और उसको ठीक करने का भी प्रयास करेंगे। जब हम उस काव्य के गुण और दोष को नहीं जानेंगे। तो उसका सुधार भी नहीं कर पाएंगे।

मुख्य रूप से काव्य के कुल पांच दोष हैं।
1. वाक्य दोष
2. शब्द दोष
3. अर्थ दोष
4. छंद दोष
5. रस दोष

वाक्य दोष

जो वाक्य की सुंदरता को प्रभावित करें उसे हम वाक्य दोस्त कहते हैं। इसके भी कुल पांच भेद हैं।

अधिकपदत्व दोष-

आपने देखा होगा कि किसी वाक्य में कोई ऐसा शब्द होता है जिसकी वहां पर जरूरत भी नहीं है तब भी उसको जोड़ दिया जाता है।  अर्थात उसे शब्द के रहने से उसे वाक्य के अर्थ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता वह शब्द अनावश्यक ही जोड़ दिया गया है।  उसको हम अधिकपदत्व तो दोष कहते हैं। तुम्हारी आंखें राजीव नयन हैं। यहां पर हम आंख शब्द का प्रयोग वाक्य में नहीं भी करेंगे तो कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ने वाला। अगर हमें यह बोल दें की तुम राजीव नयन हो बात वही है।

न्यूनपदत्व दोष
जब किसी वाक्य की संरचना में किसी शब्द की कमी पड़ जाए या फिर उस शब्द की कमी से उस वाक्य की सुंदरता या उसके अर्थ समझने में दिक्कत हो तो उसे न्यूनपदत्व दोष कहते हैं। जैस-
साथ आ जाओ तो मैं सफल हो जाऊंगा। इस वाक्य में यह क्लियर नहीं हो रहा है कि किसके आने से मैं सफल हो जाऊंगा अगर मैं इस वाक्य के पहले किसी व्यक्ति का नाम लिख दूं की राम आप मेरे साथ आ जाओ मैं सफल हो जाऊंगा तो यह वाक्य पूर्ण माना जाएगा।

पुनरुक्त दोष
इस दोष सीधा सा मतलब है पुनरावृति। जब एक ही शब्द का बार-बार प्रयोग हो। जैसे हिमालय की पहाड़ियां सुंदर मनमोहक मंजु हैं।
कृष्णा के कोमल वचन सभी को अच्छे लगते हैं और भाते हैं।

अक्रमत्व दोष
इस दोष में शब्दों का प्रयोग क्रम से नहीं किया जाता है। किसी भी शब्द का कहीं भी प्रयोग कर दिया जाता है। जब शब्द क्रम से नहीं होंगे तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा।

समाप्तपुनराप्तदोष
इस दोष में वाक्य की समाप्ति पर एक बार पुनः विशेषण का प्रयोग कर दिया जाता है।

काव्य दोष का अगला प्रकार

शब्द दोष

जहां शब्दों की सुंदरता में कमी के कारण काव्य प्रभावित होता है वहां पर शब्द दोष होता है। शब्द दोष कुल सात प्रकार के हैं।

1. दुःश्रव दोष- इस दोष में शब्द कठोर वर्णों से बने होते हैं। और सुनने में कानों को बिल्कुल अच्छे नहीं लगते तो यहां पर दुःश्रव दोष होता है।

2. च्युतसंस्कृत दोष- इस दोष में शब्द का प्रयोग व्याकरण नियमों के विरुद्ध किया जाता है। जब हम किसी शब्द का प्रयोग भाषा के नियमों के विरुद्ध करते हैं तो वहां पर भाषा का स्तर और उसका संस्कार गिर जाता है जिस कारण पूरे शब्द की सुंदरता खराब हो जाती है।
3. अप्रयुक्त दोष- इस दोष में शब्द का प्रयोग व्याकरण के नियम के अनुसार तो ठीक होता है लेकिन उनका बोलने में कोई स्थान नहीं आता है इसे हम अप्रयुक्त दोष कहते हैं।

4. ग्रामत्व दोष- जब काव्य और साहित्य की भाषा में गवारु शब्दों का उपयोग किया जाए तो वहां पर ग्रामत्व तो दोष होता है। इसमें अधिकतर उसे आंचलिकता से संबंधित और देशी शब्दों का प्रयोग होता है।

5. अश्लीलत्व दोष- जब हम भाषा में अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हैं तो वहां पर अश्लीलत्व दोष होता है।

6. अप्रतित्व दोष- इस दोष में हम ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जिसका संबंध किसी विशिष्ट विद्या से हो या फिर वह कोई पारिभाषिक शब्दावली हो।

7. क्लिष्टत्व दोष- इस दोस्त में हमें उस काव्य के शब्दों के माध्यम से उसके अर्थ को समझने में कठिनाई महसूस हो वहां पर क्लिष्टत्व तो दोष होता है।

अर्थ दोष-

वह दोस्त जिससे अर्थ की सुंदरता और उसकी रमणीयता में कमी होता है उसे अर्थ दोष कहते हैं। यह कुल पांच प्रकार का है।

छंद दोष-

इस दोष में छंद के समुचित प्रयोग न होने से काव्य की सुंदरता और रमणीयता में कमी आती है वहां पर छंद दोष होता है। यह कुल तीन प्रकार का होता है

गति भंग दोष- जब काव्य में चांद की मात्राएं और उसके वर्ण समान संख्या में हो फिर भी उसके गति और ले ठीक ना हो तो वहां पर गति भंग दोष होता है।

यति भंग- दोष इस दोष में काव्य के अंदर छंद की गति तो ठीक होती है लेकिन उसका यति ठीक नहीं होता है तो वहां पर यति भंग दोष होता है।

हत्वृतत्व दोष- जब काव्य में रस की जगह छंद का प्रयोग किया जाता है। वहां पर हतवृतत्व दोष होता है।

रस दोष-

जब काव्य में रस की वजह से काव्य की सुंदरता में कमी आती है। वहां पर रस दोष होता है। इसके कल 10 भेद हैं।

निष्कर्षतः

तो हम कह सकते हैं की काव्य दोष किसी भी साहित्य का अभिन्न अंग है यदि हम चाहते हैं कि हमारा साहित्य उत्कृष्ट बने तो इन सभी दोषों को साहित्य से दूर रखा जाए।

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