रचनात्मक लेखन का अर्थ और महत्व

रचनात्मक लेखन का अर्थ और महत्व- किसी भी क्षेत्र में जैसे कला, गद्य, पद या फिर किसी भौतिक वस्तु का मौलिक सृजन ही रचना कहलाता है। जो अपने आप में नव सृजित हो। रचनात्मक लेखन से हमारा अभिप्राय है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा स्वयं किसी विचार या दर्शन के आधार पर मौलिक रूप से किया गया लेखन या वर्णन रचनात्मक लेखन है। रचनात्मक लेखन का कार्य प्राचीन काल से चला आ रहा है अगर हम कहे की रचनात्मक लेखन अनुकरण पर आधारित है तो इसमें कोई गलत नहीं होगा क्योंकि हम किसी विचार दर्शन या रचना को पढ़कर ही अपनी एक नई रचना दर्शन और विचार प्रस्तुत करते हैं।

रचनात्मक लेखन का अर्थ

रचनात्मक लेखन के बहुत से स्तर हैं। कोई रचनाकार इन्हीं में से कोई एक स्तर को चुनकर जैसे गद्य पद्य भाषा आदि माध्यमों से समाज का नव सृजन करता है तथा समाज के भीतर एक नई चेतना अपने विचारों तथा अपने दर्शन से या फिर कहे अपनी रचना से संप्रेषित करता है रचनात्मक लेखन कहलाता है। यह रचनात्मक लेखन समाज के सभी वर्गों का एक समान हित करें तब जाकर सही मायने में वह रचना विचार दर्शन एक उत्कृष्ट रचनात्मक लेखन कहलाएगा।

रचनात्मक लेखन के संदर्भ में मुक्तिबोध ने कहा है किरचनात्मक लेखन के अंतर्गत वैचारिकता और ज्ञानात्मकता तो होती ही है। इसके साथ ही उसमें मूल्यबोध एवं सौंदर्य बोध का भी अनुपम संगम पाया जाता है। रचना प्रक्रिया एक अन्वेषण की प्रक्रिया होती है। इसमें लेखक अपने अनुभवों और समकालीन परिस्थितियों से जूझता हुआ निरंतर आत्मसंघर्ष की स्थिति में रहता है। मुक्तिबोध ने रचना प्रक्रिया के विषय में कहा है “रचना प्रक्रिया, वस्तुतः एक खोज और एक ग्रहण का नाम है।” (नयी कविता का आत्म संघर्ष तथा अन्य निबंध)

हमें रचनात्मक लेखन की आवश्यकता इसलिए है कि हम समाज में व्यक्ति के माध्यम से एक नए सृजक को पैदा कर सके। वह अपनी रचनात्मक लेखन से समाज को गति और रास्ता दिखा सके। जो एक सभ्य समाज और विकसित समाज के लिए जरूरी है। वह अपनी रचनात्मक लेखन से कम शब्दों में अपनी बातों को समाज के सामने स्पष्ट करें। इसलिए हमें रचनात्मक लेखन की जरूरत है।

जो गागर में सागर भर सके। व्यक्ति अपनी रचनात्मक लेखन से एक नया दर्शन एक नया विचार और एक नई रचना को समाज के मध्य स्थापित करें। समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने। अगर आज के अत्याधुनिक युग में बात करें तो तमाम क्षेत्रों में चाहे वह सोशल मीडिया हो मास कम्युनिकेशन हो तमाम क्षेत्रों में हमें ऐसी रचनात्मक लेखन की जरूरत है जो समाज में एक नए नवाचार पैदा कर सके। और आज के युग में इस रचनात्मक लेखन से रोजगार भी जुड़ा है।

रचनात्मक लेखन का महत्व

रचनात्मक लेखन के तत्व

जैसे हम कहानी लेखन की बात करते हैं तो बोलते हैं कि इसके लिए 6 तत्व आवश्यक है। वैसे ही जब हम रचनात्मक लेखन की बात करते हैं तो रचनात्मक लेखन के लिए भी कुछ तत्वों की आवश्यकता होती है जिनकी हमें एक-एक कर चर्चा करेंगे।

पहला है मौलिकता- मौलिकता का अर्थ यह है कि उस रचना में रचनाकार का मौलिक सृजन क्या है अर्थात रचनाकार ने समाज को वह कौन सा मौलिक विचार और दर्शन रचना के अंदर भरा है। जिससे पूरे समाज का कल्याण हो सके। अगर रचना में कोई मौलिकता नहीं है तो वह रचनात्मक लेखन नहीं हो सकता अर्थात उसको सरल शब्दों में कहें तो किसी रचना दर्शन या विचार का नकल हो सकता है।

इस विषय को हम गानों के माध्यम से समझ सकते हैं आजकल हम बहुत सारे गाने सुनते हैं लेकिन आप देखते होंगे कि कुछ गाने जो बहुत पहले गए गए लेकिन आज उन्हें गानों में थोड़ा सा परिवर्तन करके धुन में संगीत में ताल में आज हम उसको न्यू वर्जन बोल देते हैं। लेकिन हम किसी भी रूप में इस न्यू वर्जन गीत को मौलिक गीत नहीं बोल सकते।

दूसरा है संवेदना- संवेदना जिंदे इंसान की पहचान होती है। जब हम स्थिति के अनुसार व्यवहार करते हैं तो हम एक संवेदनशील इंसान कहलाते हैं। जैसे खुशी के समय खुशी का व्यवहार दुखी के समय दुख का व्यवहार किसी असहाय प्राणी के लिए सहायता का भाव आदि तमाम व्यवहार जो समाज अनुकूल हो संवेदनशीलता कहलाती है। वैसे ही हमारी रचनात्मक लेखन में भी संवेदनशीलता और सजकता होनी चाहिए समाज के संवेदनशील मुद्दों पर एक सजग और स्पष्ट विचार होना चाहिए।

बौद्धिकता रचनात्मक लेखन का तीसरा तत्व है। लेकिन रचनात्मक लेखन में बौद्धिकता का हमें उचित प्रयोग करना है। अर्थात कहें तो रचनाकार को अपनी बौद्धिक विचार को रचना पर नहीं थोपना है। जिससे वह रचना समाज की रचना ना होकर एक व्यक्तिगत रचना हो जाएगी। ऐसा बहुत बार होता है कि जब रचनाकार किसी विषय को लेकर भावनाओं में बह जाता है।

तो वह समाज के सभी वर्गों को न सोचकर स्वयं की भावनाओं को रचना में थोप देता है। जिससे वह रचना पूरे समाज का न होकर एक व्यक्ति की भावनाओं का वमन हो जाता है। इसलिए रचनात्मक लेखन करते समय हमें अपने भावनाओं को संयमित रखना चाहिए हम स्वयं का कल्याण न सोचकर पूरे समाज का कल्याण सोचकर अपनी बौद्धिकता का प्रयोग रचनात्मक लेखन में करें।

लोकमंगलकारी रचनात्मक लेखन का चौथा गुण है हमारा रचनात्मक लेखन समाज के कल्याण और जुड़ाव हो ना की बिखरा हो। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कवि तुलसीदास को लोकमंगलकारी कवि कहा है। क्योंकि तुलसीदास की रचना रामचरितमानस ने पूरे भारतीय समाज को प्रभु राम की कथा से एक सूत्र में बांध दिया।

विश्वसनीयता रचनात्मक लेखन का अभिन्न अंग है। रचनात्मक लेखन करते समय हमें इस बात का पूर्णता ज्ञान होना चाहिए की जो तथ्य हम दे रहे हैं क्या वह पूरी तरह से पुष्ट है? जैसे 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। तो हम इसी दिन भारत को स्वतंत्र बताएंगे ना की किसी और दिन। यह पूर्णतः साक्ष्य के आधार पर प्रमाणित है कि भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजाद हुआ।

जब हम रचनात्मक लेखन में तत्वों की प्रमाणिकता का ध्यान रखते हैं तो तो हमारा लेखन बहुत ही विश्वसनीय और सभी पाठकों द्वारा स्वीकार्य होता है। इसलिए रचनात्मक लेखन में विश्वसनीयता बहुत ही आवश्यक है कि हम अपने लेखन में जो बातें कह रहे हैं। वह पूरी तरह सत्य है या नहीं इसका स्वयं लेखक को ही ध्यान रखना होता है।

भाषा की सहजता
रचनात्मक लेखन करते समय हमें अपनी भाषा का बहुत ध्यान रखना होता है। हमारा भाषा जितना सरल और सहज होगा हम अपनी बात उतने ही अधिक लोगों तक पहुंचा सकते हैं। लेकिन जैसे ही हमारा भाषा कठिन और क्लिस्ट होगा तो हम आम जन तक अपनी बातों को नहीं पहुंचा पाएंगे क्योंकि जो आम जनता है वह बहुत ही सरल और सीधी है।

हम उसको कठिन शब्दों में किसी बात को नहीं समझा सकते। हम उसके ही शब्दों में उस बात को समझ सकते हैं और जैसा कि जानते हैं कि देश की सभी जनता पढ़ी-लिखी नहीं है तो हमें इसका भी विशेष ध्यान रखना होगा की रचनात्मक लेखन करते समय हम ऐसी भाषा का प्रयोग करें जो सभी को समझ में आए।

रचनात्मक लेखन का महत्व

किसी भी रचनात्मक लेखन का महत्व उसकी उपयोगिता को ध्यान रखते हुए जाना जा सकता है। यदि हम कोई लेख पढ़ते हैं तो वह हमारे भीतर नए विचारों विषयों का उद्वेलन का कार्य करती है जिससे हम ज्ञान की प्रक्रिया में शामिल होते हैं। यदि कोई रचनात्मक लेख सामान्य ढंग से भी लिसी स्थान का वर्णन करते हुए लिखा गया है तो उससे हमें उस स्थान के विषय में कुछ नई जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार कोई फिल्म सबसे प्रारम्भिक रूप में रचनात्मक लेखन ही होता है और वह मनोरंजन का कार्य करती है। अतः इसका महत्व विविध क्षेत्रों की आवश्यकताओं को देखते हुए विविध और अनेक हैं।

निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि आज के दौर में रचनात्मक लेखन का बहुत ही ज्यादा महत्व है क्योंकि आज के भागम भाग और गतिशील युग में कोई भी व्यक्ति बहुत विस्तृत लेखन नहीं पढ़ना चाहता। वह चाहता है कि कोई व्यक्ति अपनी रचनात्मकता का प्रयोग करके बहुत ही कम शब्दों में किसी विषय को समझा दे या फिर उसके मर्म को स्पष्ट कर दे।

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