कोसी का घटवार- शेखर जोशी

कोसी का घटवार कहानी का समीक्षा

कोसी का घटवार कहानी के माध्यम से पहाड़ी ग्रामीण परिवेश को हम बहुत अच्छे से जान सकते हैं। इस कहानी को पढ़कर हम समझ सकते हैं कि गांव में लोग कैसे होते हैं? गांव का परिवेश कैसा होता है? गांव में लोगों के बीच प्रेम का स्थान क्या होता है? आदि तमाम बातों को इस कहानी के माध्यम से बाकायदा समझ सकते हैं।

कोसी का घटवार की समीक्षा
माइंड मैप

कहानी का प्रमुख पुरुष किरदार गोसाई है। जो सेना में नौकरी करता था। स्त्री किरदार में सबसे प्रमुख लक्षमा है। लक्षमा, गोसाई से प्रेम करती थी और दोनों एक ही गांव में रहते थे। गोसाई फौज में रहने तथा अनाथ होने के कारण दोनों की शादी नहीं होती। लक्षमा का बाप कहता इसके पीछे तो भाई-बहन नहीं मां-बाप नहीं और विदेश में बंदूक की नौकरी पर जान रखने वाले को छोकरी कैसे दे दें?

नौकरी पूरी होने के बाद गोसाई में गांव में चक्की की दुकान खोल लेता है दूसरी तरफ लक्षमा की शादी कहीं और कर दी जाती है लेकिन कुछ समय पश्चात लक्षमा विधवा हो जाती है साथ ही वह एक बच्चे की मां होती है।

कोसी के घटवार में लेखक ने फ्लैशबैक के माध्यम से पुरानी स्मृतियों को जिंदा कर देता है। साथ ही अपनी कथावस्तु को गति प्रदान करता है और पहले घटी हुई बातें पाठक के सामने बहुत ही स्पष्टता के साथ आती हैं कभी-कभी हम देखते हैं की फिल्मों में भी फ्लैशबैक के माध्यम से कथा को उद्घाटित किया जाता है। इस दृष्टि से कोसी का घटवार कहानी बहुत ही जीवंत और मर्मस्पर्शी है।

गोसाई जब बहुत दिनों बाद लक्षमा को अपनी चक्की की दुकान पर देखाता है तो शुरू में वह पहचान नहीं पता कि वह लक्षमा ही है। एक बार तो उसने यह भी लक्षमा से कह दिया कि आज हम आटा नहीं पीसेंगे लेकिन जब लक्षमा को पहचान लेता है तो हां कर देता है। और एकाएक उसके मन मस्तिष्क पर पुरानी स्मृतियां या कहे तो यादें ताज हो उठती हैं।

गोसाई सोचता है कि इसी ने लक्षमा जो आंखों में आंसू भर के गंगानाथज्यू की कसम खाकर कहा था कि तुम जो कहोगे मैं वही करूंगी। अब दोनों के बीच बातें होनी शुरू हो गई और पुरानी बातें भी सामने आने लगे लक्षमा यह भी बताती है कि बाबा अब नहीं रहे। मायके वालों को लगता है कि यह यहां पर रहकर अपना हक मांगेगी तो मैं अपने चाचा और भतीजे  यह बात कह दिया कि मुझे अपने बाबा के हिस्से में से कुछ नहीं चाहिए।

कोसी के घटवार कहानी में लेखक ने ग्रामीण परिवेश का बहुत ही सूक्ष्म वर्णन किया है। साथ ही साथ ग्रामीण भाषा का बहुत ही विशेष ध्यान दिया है। 

कोसी के घटवार कहानी की शुरुआत गोसाई की आटा चक्की की दुकान से होती है जिसमें लेखक गोसाई के दिनचर्या को दिखाते हुए कहानी को आगे बढ़ाता है वह अपनी दुकान के काम के साथ-साथ समाज का भी काम करता।

गोसाई को अकेलापन काटने लगा था। लेखक बताता है की नदी के किनारे का अकेलापन नहीं उसके जीवन में हमेशा के लिए अकेलापन आकर बैठ गया है लेकिन वह किसी से बोल भी नहीं सकता अपने अकेलेपन के बारे में क्योंकि उसके जीवन में ऐसा कोई व्यक्ति है नहीं जिससे वह कह सके।

हवलदार धरमसिंह के माध्यम से गोसाई अपने फौज में जाने की कहानी बताता है कि जब पहली बार हवलदार धरमसिंह फौजी वाली पेंट पहन कर आया जो बकाया नोकदार क्रीज लगी हुई थी। इसी फौजी पेंट को पहनने के  महत्वाकांक्षा से गोसाई फौज में जाने का निर्णय लेता है। लेकिन जब वह फौज से लौटा तो पेट के साथ-साथ जीवन का अकेलापन लेकर लौटा।

गोसाई उस बात को भी याद करता है। जब वह पहली बार एनुअल लीव लेकर फौजी वर्दी पहन कर तथा सर पर क्रॉस खुखरी के क्रेस्ट वाली, काली किश्तीनुमा टोपी को तिरछा रखकर घर आया था। तो पूरे गांव में यह खबर आग की तरफ फैल गई। तब उससे गांव के सभी बच्चे  बूढ़े मिलने आए थे। 

लेकिन गोसाई की आंखें जिसको ढूंढ रही थी देखने के लिए वह उससे मिलने ना आई। उसकी आंखें पूरी भीड़ में लक्षमा को ढूंढ रही थी पर वह वहां नहीं थी। आखिर दो दिन बाद गोसाई लक्षमा से मिलता है। गांव से बाहर एक काफल के पेड़ के नीचे गोसाई के घुटनों पर सर रखकर लक्षमा काफल खाती है। लेकिन कुछ दिन बाद लक्षमा की शादी हो जाती है और वह दोबारा नौकरी से लौटकर गांव भी नहीं जाता क्योंकि वहां उसका मन नहीं लगता। लक्षमा के बारे में उसे किसी से पूछना भी अच्छा नहीं लगता। जितने दिन तक गोसाई ने नौकरी किया उतने  दिन तक पलट कर गांव नहीं गया लगातार 15 साल तक।

एक दिन लक्षमा अनाज पिसवाने के लिए गोसाई के चक्की पर आती है लेकिन बहुत ज्यादा अनाज के गल्ले होने के कारण गोसाई मना कर देता है लेकिन लक्षमा की आवाज सुनकर उसे ऐसा लगता है कि यह तो किसी चिर परिचित का आवाज है और जैसे ही लक्षमा जाने लगती है वह दो बार लक्षमा लक्षमा कहकर बुलाता है।

जैसे ही लक्षमा, गोसाई को पहचानती है वह आश्चर्यचकित रह जाती है लेकिन गोसाई बातों के क्रम को आगे बढ़ाने के लिए लक्षमा  से संबंधित बातें पूछने लगता है की मायके में तुम कब तक रहोगी इस बात को सुनकर लक्षमा रोने लगती है और जैसे ही गोसाई की नजर लक्ष्मण के गले में जाती है तो लक्ष्मा मंगलसूत्र नहीं पहनी रहती है और गोसाई समझ जाता है।

बातों का क्रम तोड़कर गोसाई खाने का प्रबंध करता है। लक्षमा खुद आग्रह करके रोटियां पकाती है। गोसाई, लक्षमा के बच्चे को रोटियां खिलाता है और खुद भी खाता है और कहता है कि लोग सही कहते हैं की औरत के हाथ की बनी रोटियों का स्वाद ही अलग होता है।

लक्षमा घर में खाने का सामान न होने के कारण पैसे की विवस्ता जाहिर करती है तो गोसाई कहता है कि लक्षमा कुछ पैसे तुम रख लो कुछ दिनों में दफ्तर से मेरा मनी आर्डर आ जाएगा लेकिन लक्षमा पैसे नहीं लेती।

  • निष्कर्ष- कोसी का घटवार कहानी के माध्यम से लेखक ने ग्रामीण परंपरा को दिखाया है कि कैसे समाज के लोक लाज से दो प्रेमी जीवन के अंत तक नहीं मिल पाए और उस समाज से विद्रोह भी नहीं कर पाते क्योंकि उनको इस समाज में रहना है। गोसाई, लक्षमा को अपनी मन की बात भी नहीं बोल पाता क्योंकि गोसाई उस गांव के ताना-बाना में रम गया है। इसलिए कहानी के अंत में दिखाया गया है कि सर पर आटा की बोरी रख के  लक्षमा अपने बच्चों को लेकर घर के लिए चली जाती है।

कानों में कंगना- राधिका रमण प्रसाद सिंह की समीक्षा को पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें…https://gamakauaa.com/%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%a8%e0%a4%be/

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