‘उसने कहा था’ – पंडित चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’

‘उसने कहा था’ कहानी के लेखक पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 1883 ईस्वी में जयपुर में हुआ था। पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी का बचपन से साहित्य में रुचि था। जिसका प्रकाशन 1915 ईस्वी में हुआ। इस कहानी के अलावा चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने ‘बुद्धू का कांटा’ और ‘सुखम जीवन’ आदि कहानियों की रचना की।

‘उसने कहा था’ कहानी में लेखक ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की तरफ से लड़ रहे भारतीय सैनिकों की जीवन और प्रेम कहानी को दिखाया है।कहानी का मुख्य किरदार लहना सिंह है। इस कहानी में लेखक ने फ्लैशबैक के माध्यम से लहना सिंह के पहले प्रेम को दिखाया है। हिंदी साहित्य की यह पहली कहानी है जिसमें फ्लैशबैक या कहे तो पूर्व दीप्ति भाव का प्रयोग किया गया है। इसमें लेखक कहानी की शुरुआत में बहुत पहले घट चुकी घटनाओं को वर्तमान में दिखाकर कहानी को रोचक और प्रासंगिक बनाने का प्रयास करता है।

फ्लैशबैक के माध्यम से लेखक ने नायक लहना सिंह के बचपन में किए गए प्रेम कहानी को दर्शाया है। वह प्रेम ऐसा है जिसमें कोई छल कपट नहीं है। इस प्रेम की तीव्रता जो बचपन में थी वही तीव्रता वर्षों बाद जब लहना ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गया है तब भी वही है। एक बार सूबेदारनी के कहने पर वह अपनी जान की बाजी लगा देता है।

अपनी प्रेमिका के पति और बच्चे को बचाने के लिए अपनी जान तक दे देता है। यह कहानी 1916 में रची गई। तब की दृष्टि से देखा जाए तो यह कहानी एक उत्तम कीर्ति है। आज भी ‘उसने कहा था’ कहानी को कालजई कहानी माना जाता है। आज भी बहुत ऐसे प्रेम प्रसंग हमें देखने को मिलते हैं जिसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए आत्मोत्सर्ग अर्थात अपने प्राण को भी न्योछावर कर देता है।

‘उसने कहा था’ कहानी की शुरुआत शहर के खुशनुमा से होता है। और अंत बहुत ही त्रासद जिसमें नायक मृत्यु सैया पर लेट अपने अटूट प्रेम की कीमत चुकता है। जो की एक निस्वार्थ प्रेम भाव को भी दर्शाता है।

आगे विभिन्न बिंदुओं के माध्यम से कहानी की पूर्ण समीक्षा करेंगे जो कहानी के संपूर्ण रूप को व्याख्याित करेगी।

‘उसने कहा था’ की पूर्ण समीक्षा

उसने कहा था कहानी की शुरुआत अमृतसर शहर से होती है। जिसमें लेखक शहर की सुंदरता और उसके विभिन्न दृश्यों को वर्णित करते हुए कहानी को शुरू करता है। स्थान की जानकारी देना किसी भी कहानी का अभिन्न अंग होता है। जिससे पाठक को उस शहर और दृश्य में रमने में आसानी होती है।

लेखक आगे बताता है कि एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दुकान पर आपस में मिलते हैं। दोनों का रंग रूप देखकर पता चलता है कि दोनों सीख हैं। जब यह दुकान पर पहुंचते हैं सामान लेने। तब दुकानदार एक बाहरी व्यक्ति से बहस कर रहा है सामान लेने देने को लेकर। जो लड़का था वह अपने मां के केस धोने के लिए दही लेने आया था और लड़की रसोई का सामान।

जब तक दुकानदार उस बाहरी व्यक्ति से बहस कर रहा था तब तक यह जो दोनों लड़का लड़की है आपस में एक दूसरे से बातचीत कर लेते हैं। वह एक दूसरे से घर का पता पूछते हैं कि तेरा घर कहां है तो लड़की अपने घर की पता बताती है। लड़का अपने मामा के घर का पता बताता है और बोलता है कि मैं अपने मामा के घर आया हूं।

जैसे ही दुकानदार उस बाहरी व्यक्ति से फुर्सत पता है तो इन दोनों का सामान देकर इनका विदा कर देता है। लड़का लड़की सामान लेकर रास्ते में जाते हुए एक दूसरे से बात करते हैं तब तक लड़का मौका देखकर लड़की से पूछता है कि ‘तेरी कुड़मई हो गई’ इस पर लड़की आंखें ऊपर करके धत कहकर वहां से चल देती है और लड़का चुपचाप खड़ा होकर वहां उसका देखता रह गया।

लड़का-लकड़ी अक्सर दूसरे-तीसरे दिन किसी सब्जी वाले की दुकान पर किसी दूध वाले की दुकान पर आपस से मिल जाते। लड़का हर बार यही सवाल पूछता कि ‘तेरी कुड़माई हो गई’ और लड़की का वही जवाब धत कहकर वहां से चले जाना। लड़की के बार-बार पूछने पर एक दिन लड़की ने बोल दि हां मेरी ‘कुड़माई हो गई’ देख नहीं रहा है यह रेशम से कढ़ा हुआ साल मैं पहन रखी हूं।

इतना ही कहते ही लड़के के मन में वियोग का भाव उत्पन्न हो जाता है। वह घर की तरफ चल देता है। रास्ते में मोरी वाले को धकेल देता है। कुत्ते को पत्थर मारता है। गोभी वाले के ठेले पर दूध फेंक देता है। सामने से कोई व्यक्ति आ रहा था उसे टकराया उसने उसको अंधा बोला। अक्सर जो प्रेम में होता है कि प्रेमिका के माना करने के बाद प्रेमी वियोगी हो जाता है। कुछ वैसा ही हाल इस लड़के का भी था। यह लड़का कोई और नहीं आगे चलकर लहना  सिंह होता है।

युद्ध का दृश्य

कहानी के दूसरे भाग में लेखक यह दिखाते हैं कि भारतीय सैनिक अंग्रेजों की तरफ से युद्ध लड़ने के लिए विदेशों में जाकर खंदकों में बैठे हुए हैं। आपस में बात करते हैं कि दिन रात खंदको में बैठे-बैठे हमारी हड्डियां कट गई है। चारों तरफ से बम-गोले के धमाकों की आवाज आ रही है। कब मृत्यु हमारा वर्णन कर ले। फिर लहना सिंह बोलता है कि तीन दिन और है चार दिन तो हमने खंदक में बिता ही लिए हैं। उसके बाद रिलीफ आ जाएगी फिर 7 दिन की छुट्टी हो जाएगी। दरअसल बात यह है कि सभी सैनिकों की सात-सात दिन की खंदको में ड्यूटी लगती है उसके बाद उनको छुट्टी प्राप्त होती है 7 दिन की।

सूबेदार हजारा सिंह और लहना सिंह आपस में बात करते हैं। यह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान की घटना है जब अंग्रेज भारतीय सैनिकों को युद्ध लड़ने के लिए जर्मन भेजे हुए हैं। सूबेदार हजारा सिंह कहता है कि अब अंग्रेज अफसर हो जो कहेंगे हम वही कर सकते हैं। क्योंकि सारे सैनिक युद्ध लड़ने जर्मनी गए हैं। अपने वतन से बहुत दूर और सबको अपने घर की याद आ रही है। यह लड़ाई खत्म हो और हम अपने घर पहुंचे।

बोधा सिंह सूबेदार हजारा सिंह का बेटा है। वह भी अपने पिता के साथ जर्मन सैनिकों से युद्ध लड़ने के लिए आया है. लेकिन उसकी तबीयत खराब होने की वजह से खंदक में ही आराम कर रहा है। इस दौरान लहना सिंह उसका बहुत ख्याल रखता है। लहना सिंह ने इतनी भीषण ठंडक में भी उसने अपनी कंबल बोध सिंह को दे रखा है।

यहां पर एक बात आपको बताते चलूं की लहना सिंह बिल्कुल नहीं जानता की बोध सिंह उस लड़की का बेटा है जिसको उसने कभी बचपन में बोला था की ‘तेरी कुरमई हो गई’ और लड़की धत बोल कर चली जाती है इस लड़की का पति सूबेदार हजारा सिंह है जो लहना सिंह के साथ जर्मन सैनिकों से युद्ध लड़ने के लिए जर्मनी आए हुए हैं। इस बात का लहना सिंह को बिल्कुल इल्म नहीं है कि जिस लड़की से प्रेम करता था उसके पति और बेटे युद्ध में लड़ने आए हैं। बिना कुछ जानते हुए लहना सिंह बोधा सिंह का बहुत ख्याल रखता है और अपनी जर्सी तक भी उतार कर बोधा सिंह को पहना देता है।

जब दोनों आपस में बात कर रहे थे तभी अंग्रेज लेफ्टिनेंट आता है और आवाज देता है। सूबेदार हजारा सिंह तुरंत तनकर खड़ा होकर लेफ्टिनेंट साहब को सलामी देता है। इसके बाद लेफ्टिनेंट बताता है कि की मील भर की दूरी पर पूर्व दिशा में 50 से अधिक जर्मन सैनिक हैं। और लेफ्टिनेंट कहता है कि हमें इसी समय उन पर हमला करना होगा। फिर लेफ्टिनेंट बोलता है कि आगे की मोड़ पर मैं 15 जवान को खड़े कर कर आया हूं। तुम यहां 10 आदमी छोड़कर बाकी सब को अपने साथ ले जाओ और उन 15 जवानों के साथ ही जाकर मिल जाओ।

जब इस बात पर बहस चल रही थी कि यहां पर 10 आदमी कौन रखेंगे। वही किनारे लेफ्टिनेंट खड़ा होकर सिगरेट पी रहा था। लेफ्टिनेंट ने लहना सिंह को देखा तो उसकी तरफ सिगरेट बढ़ाया लहना सिंह को लेफ्टिनेंट पर शक हुआ कि हमारे लेफ्टिनेंट सब तो ऐसे नहीं है। हमारे लेफ्टिनेंट साहब के सर पर तो बाल है लेकिन इनको तो बाल ही नहीं है। अब इस बात को जाचने के लिए लहना सिंह लेफ्टिनेंट साहब से बात करने लगता है। और लहना सिंह लेफ्टिनेंट साहब से शिकार वगैरा की बातें करता है।

वह तुरंत पकड़ लेता है कि यह हमारे लेफ्टिनेंट साहब नहीं है या तो वह मारे गए हैं या तो जर्मन ने उन्हें कैद कर लिया है तुरंत वह भागता हुआ जाता है और वजीर सिंह से टकराता है और वजीर को बोलता है कि वजीर हमारे लेफ्टिनेंट साहब या तो जर्मन के कैद में है या तो मारे गए यह हमारे लेफ्टिनेंट साहब नहीं है

यह उनके रूप में कोई बहरूपिया आया है। जो साफ उर्दू बोलता है। हमें अपने सैनिकों को वहां नहीं भेजना है हमें पूरी तरह तैयार रहना है। मैंने अच्छे से देख लिया है वह हमारे लेफ्टिनेंट साहब नहीं है तुम तुरंत सूबेदार हजारा सिंह के पास जाओ और उनको बोलो कि वहां नहीं जाना है नहीं तो सभी के सभी मारे जाएंगे।

वह देखता है कि जो नकली लेफ्टिनेंट साहब है उसके पूरे खंदक में गोली बम बारूद लगा रहा है। वह तुरंत लेफ्टिनेंट पर हमला बोलता है और उसको धराशाई कर देता है और उसको बताता है कि मुझे पहली बार पता चला कि सिख सिगरेट पीते हैं। तमाम उसके झूठ को बताया। यह जैसे ही घटना घटता है तुरंत जर्मन सैनिक भारतीय सैनिकों पर हमला बोल देते हैं। बहुत जबरदस्त लड़ाई होती है। एक दूसरे पर गोलीबारी बम फेक जाते हैं। लहना सिंह सूबेदार हजारा सिंह सभी जर्मन सैनिकों से मोर्चा लेते हैं। लंबी लड़ाई के बाद भारतीय सैनिकों ने 63 जर्मन सैनिकों को मार गिराया।

सूबेदार हजारा सिंह लहना सिंह के तेज दरार बुद्धि का तारीफ करता है। और कह रहे थे कि अगर आज तू नहीं रहता तो हम सभी मारे जाते। लेकिन सबको बचाने के चक्कर में लहना सिंह के पैरों में एक गोली लग गई थी और भी सैनिकों को गोली लगी अब धीरे-धीरे सभी सैनिकों को अस्पताल पहुंचाने की बारी आई और सबको अस्पताल पहुंचाया गया एक गाड़ी आती है तो उसमें बोधा सिंह को लेटाया जाता है जो की पूरी तरह ज्वार से बड़बड़ रहा था।

सूबेदार हजारा सिंह लहना को छोड़कर जाना नहीं चाहते थे। लेकिन लहना सिंह सूबेदारनी का कसम देता है कि तुमको बोधा सिंह के साथ जाना ही होगा यहां पर मैं आप लोगों को बताना चाहूंगा कि सूबेदारनी वही लड़की है जिसको कभी बचपन में लहना सिंह ने पूछा था की ‘तेरी कुरमई हो गई’ उस लड़की की शादी सूबेदार हजारा सिंह से होता है। एक बार जब लहना सिंह सूबेदार हजारा सिंह के घर जाता है तो वहां पर सूबेदारनी को देखा लहना सिंह को बिल्कुल नहीं पता है कि यह सूबेदारनी वही लड़की है जिसको मैं बचपन में प्रेम किया था।

बाद में सूबेदारनी बताती है कि तू वही लड़का है ना अमृतसर वाला जो बचपन में मिला था। जिसने पूछा था कि ‘तेरी कुड़माई हो गई’ मैं वही लड़की हूं। लहना सिंह को सारी बातें याद आ जाती हैं। सूबेदारनी लहना सिंह को पीने के लिए चाय लाती है। तब तक सूबेदार जर्मन सैनिकों से लड़ने जाने के लिए सामान पैक कर रहे थे क्योंकि तय हुआ था कि आते वक्त सूबेदार हजारा सिंह और लहना सिंह दोनों साथ में ही आएंगे। इसलिए लहना सिंह सूबेदार हजारा सिंह के घर पहुंच गया था। जहां पर लहना सिंह का सूबेदारनी से मुलाकात होता है।

जाते वक्त सूबेदारनी ने लहना सिंह से बोलती है कि मेरे बेटे और पति का ध्यान रखना। इस बात पर लहना सिंह उसको बोलता है कि हां मैं ध्यान रखूंगा। आज सूबेदारनी के इस वचन को निभाते हुए लहना सिंह ने सूबेदारनी के पति सूबेदार हजारा सिंह और उसके बेटे बोधा सिंह दोनों के प्राणों की रक्षा करता है।

और जब सूबेदार गाड़ी में बैठ जाता है तो लहना सिंह सूबेदार हजारा सिंह से कहता है की सूबेदारनी से बोलना की जो उसने कहा था मैंने उसे कर दिया। लेकिन सूबेदार कहता है कि तू भी हमारे साथ चल जो सूबेदारनी ने तुझे कहा था तू ही उसे बोल देना। लेकिन लहना सिंह तैयार नहीं होता। और गाड़ी चल देती है।

लहना सिंह वजीरा सिंह के गोद में सर रखकर लेटा हुआ है। लेटे-लेटे पूरी कहानी लहना सिंह वजीरा सिंह को सुनता है। कुछ दिन बाद अखबारों में छपता है कि फ्रांस और बेल्जियम की 8 वीं सूची में 77 में सिख राइफल जमादार लहना सिंह घाव लगने से मर गए।

कोसी का घटवार कहानी की समीक्षा…https://gamakauaa.com/%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b8%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%98%e0%a4%9f%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b0/

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