पृथ्वी पर अरस्तु का समयकाल 374 ईसा पूर्व से 322 ईसा पूर्व था। अरस्तु यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो का शिष्य था। पश्चिम, ज्ञान, विज्ञान, कला, संस्कृति आदि के क्षेत्र में अरस्तु का बहुत बड़ा योगदान है। अरस्तु का एक परिचय यह भी है कि वह सिकंदर के गुरु भी थे। सिकंदर भारत को छोड़कर पूरे विश्व को अपने पराक्रम और युद्ध कौशल से विजयी किया।
अरस्तु ने अपने जीवन काल में लगभग सभी विषयों पर 400 से अधिक किताबें लिखी। अरस्तु का साहित्य संबंधी विचार उसके दो प्रमुख ग्रंथ Poetics (काव्यशास्त्र) और (Rhetoric) भाषा शास्त्र में मिलता है। अरस्तु एक साहित्य प्रेमी और सुलझा हुआ इंसान था। उसने साहित्य को मानव मन से जोड़ने के लिए उस पर अपने विचार प्रस्तुत की। आगे हम अरस्तु के तमाम सिद्धांतों की एक-एक करके व्याख्या करेंगे मुख्यतः अरस्तु के अनुकरण और विरेचन सिद्धांत को विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।
अनुकरण का सिद्धांत
अगर हम अनुकरण सिद्धांत की बात करें तो अनुकरण को यूनानी भाषा में मिमेसिस कहा जाता है। हिंदी भाषा में इसको अनुकरण नाम दिया गया। अगर हम यह बात करें कि अनुकरण शब्द हिंदी में कैसे आया तो यह अंग्रेजी भाषा के इमिटेशन शब्द से रूपांतरित होकर आया।
अरस्तु से पहले प्लेटो ने अनुकरण सिद्धांत का विवेचन किया और इस बात की स्थापना की काव्य व्याज्य है। प्लेटो इस दुनिया का आखिरी सत्य ईश्वर को मानते हैं। उनका यह मानना है कि संसार ईश्वर का बनाया हुआ है और संसार में रहने वाले लोगों ने काव्य की निर्मित की है। इस प्रकार काव्य अनुकरण का अनुकरण है। अगर दूसरे शब्दों में हम बात करें तो अनुकरण हमेशा अधूरा होता है। प्लेटो ने पृथ्वी को अर्ध सत्य बताया और काव्य को चौथाई सत्य अर्थात यह तीन चौथाई झूठ है। इसलिए काव्य है।
अनुकरण का प्रयोग स्थूल अर्थों में प्लेटो ने लिया और इस आधार पर उसने के काव्य को तीन भागों में बांटा।
- नाट्यात्मक काव्य
- असत काव्य
- सत्य काव्य
अरस्तु ने भी अनुकरण के सिद्धांत को किसी भिन्न रूप में नहीं लिया है बल्कि इसी रूप में लिया है। परंतु अरस्तु ने अपनी संरचना और कल्पना के आधार पर काव्य में एक नई ऊर्जा और एक नया रंग भरकर काव्य के महत्व को पूर्ण स्थापित किया है।
अरस्तु काव्य को सौंदर्यवादी दृष्टि से देखते थे। उनका मानना था कि काव्य संसार और मानव जगत को सुंदर बनाने का काम करता है। उसको बढ़ाने का प्रयास करता है। काव्य दर्शन, राजनीति और नीति शास्त्र के बंधन से मुक्त होता है। अरस्तू कला को प्रकृति की अनुकृति मानते हैं।
अनुकरण को मात्र नकल का सिद्धांत नहीं कहा जा सकता बल्कि इस सिद्धांत को देने वाले इतिहासकार और कवि का दर्शन और भेद भी स्पष्ट हो जाता है। क्योंकि इतिहासकार हमें वही बताता है जो भूतकाल में घट चुका है लेकिन कवि हमें वह भी बताने का प्रयास करता है जो भविष्य में घटने वाला है। इस तरह कवि अपनी कविता और काव्य के माध्यम से दोहरी भूमिका निभाता है। एक वह जो भूतकाल में घट चुका है दूसरा वह जो भविष्य काल में घटने वाला है।
अनुकरण की प्रक्रिया
अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत के अनुसार कोई कवि वस्तुओं का पूर्ण यथा स्थिति में वर्णन नहीं करता। या तो उसके युक्ति युक्त संभावित रूप का वर्णन करता है। अरस्तु यह भी कहते हैं कि कवि मानव जीवन के अस्थाई तत्व को बताने के लिए उस वस्तु के सत्य का बलिदान भी कर सकता है या चाहे तो उसमें परिवर्तन भी कर सकता है। कवि काव्य में मानव जीवन के चित्र को चित्रित करता है। उसको या तो बहुत अच्छा बता सकता है या तो उसको बहुत बुरा बता सकता है।
कवि ऐसा कार्य अपने मन के आनंद के लिए करता है क्योंकि इस कार्य से कवि को आनंद की प्राप्ति होती है। काव्य का अंतिम उद्देश्य मानव हृदय और मन को आनंदित करना है। यह भी मानते हैं कि काव्य का विषय या फिर अनुकरण का विषय केवल बाह्य जगत ही नहीं है अपितु अंतर मन भी है। अरस्तु का मानना है कि काव्य का उद्देश्य यह नहीं है कि वस्तु कैसी है इसका उद्देश्य है कि वस्तु कैसी होनी चाहिए इस पर अपना कर्म करता है।
अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत का विरोध क्रोचे के सहजानुभूति सिद्धांत से हुआ है क्योंकि क्रोचे का मानना है कि कला मूल रूप से कलाकार के मन में घटित होती है। वह सहजानुभूति है जबकि अरस्तु इसको कल्पनातीत मानता है।
अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का हम क्रमवार चर्चा करेंगे।
1.अरस्तु कविता को संसार की अनुकृति मानते हैं तथा अनुकरण मनुष्य की मूल प्रवृत्ति है।
2.अक्सर हम घर में सुनते हैं कि जो बड़े करते हैं उसी को देखकर छोटे सीखते हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि अनुकरण से हमें शिक्षा मिलती है। छोटा बालक हमेशा अपने बड़ों के क्रिया और कर्मों को देखकर सीखता है। मतलब इसका अनुकरण करता है और यही क्रिया एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती है।अतः हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए अनुकरण सदैव अच्छी क्रियाओं का होना चाहिए। तभी हम एक उत्तम काव्य की रचना कर सकते हैं।
3.अरस्तु का मानना है कि अनुकरण की प्रक्रिया बहुत ही आनंददायक होती है क्योंकि हम जिस वस्तु का अनुकरण करते हैं उस वस्तु को मूल वस्तु मानकर आनंद प्राप्त करते हैं। इसको आप ऐसे समझिए की कोई बच्चा है। वह कक्षा में पढ़ने गया है। उसका दिमाग पूरी तरह कोरा कागज ।है उसको लगता है कि उसके शिक्षक जो बता रहे हैं वही सत्य है इस तरह से वह अपनी शिक्षक का अनुकरण करता है। एक अच्छा शिक्षक एक अच्छा शिक्षार्थी बनता है। विद्यार्थी उस शिक्षक को अपने ज्ञान का मूल स्रोत मान लेता है इसलिए उसको आनंद की प्राप्ति होती है।
4.अनुकरण एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम भयमूलक अर्थात डरने वाली वस्तुओं को भी इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि मानव हृदय को आनंद की प्राप्ति होती है।
अरस्तु ने काव्य की समीक्षा अपने स्वतंत्र हृदय से किए हैं। प्लटो की तरह किसी भी तरह के राजनीति चश्मा से काव्य को नहीं देखा है।
अतः हम कह सकते हैं कि अरस्तु ने अनुकरण के सिद्धांत को प्लटो की तुलना में नवीनता प्रदान की है। अरस्तु ने अनुकरण के माध्यम से काव्य की सुंदरता पर बोल दिया है। उसे दार्शनिक और अन्य प्रकार के नीतियों से मुक्त रखा है क्योंकि अरस्तु काव्य को प्रकृति का अनुकरण मानते थे।
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